चारों ओर चहल पहल थी। शांति देवी की व्यस्तता असीमित थी। किसी भी चीज की कमी ना हो, इसीलिए अपने बुजुर्गों से लगातार सलाह ले रही थीं। थकावट के बाद भी खुशी का एहसास चेहरे पर साफ नजर आ रहा था। आखिर इकलौते बेटे की शादी जो है। जब साहिल ने कहा था कि वह शगुन से शादी करना चाहता है, तो बेटे की खुशी देख उन्होंने सहमति दे दी। हालांकि उनके पति को थोड़ी आपत्ति थी कि शगुन कुछ ज्यादा ही हाई-फाई है। लेकिन तब शांति देवी ने यह कहकर उन्हें राजी कर लिया कि ‘‘उसे हमारे घर आना है, अपने रंग-ढंग में उसे ढाल लेंगे।’’

शांति देवी खुद एक प्रोफेसर और साहिल के पिता एक बड़ी कंपनी के डायरेक्टर थे। बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी। जो स्वयं डॉक्टर और साहिल मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था। कोठी के ऊपर के अलग-अलग फ्लोर पर उसके छोटे-बड़े चाचा और दो कोठी छोड़ उसकी बुआ रहती थीं।
इसलिए उत्सवों पर उनके घरों में मेला जैसा दिखने लगता था। शगुन एमबीए थी और एक निजी कंपनी में सीईओ थी। कार, मोटा वेतन और समाज में सम्मान और हाई सोसाइटी में पहचान सब कुछ था उसके पास। जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास भी था।
‘‘साहिल, मुझे तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा लगता है, एकदम आधुनिक विचार हैं तुम्हारे मम्मी-पापा के। मुझे नहीं लगता कि उनके साथ तालमेल करने में कोई दिक्कत आएगी। मुझे वैसे किसी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं है।’’ अक्सर शगुन साहिल से कहती।शगुन के पिता का बहुत बड़ा बिजनेस था, इसलिए फाइव स्टार होटल में उन्होंने शादी की।